1) दुग्ध समितियां अपनी निवेश राशि की समीक्षा कर सकती हैं - यदि अतिरिक्त धनराशि फ़िक्स्ड डिपॉज़िट में रखी है और उसका interest rate कम मिल रहा है तो उसे नकदी में रख लें और संचालन के लिए इस्तेमाल करें । Overdraft का विकल्प भी देखा जा सकता है |
2) सहकारी समितियों को अपनी कार्यशील राशी को पूरी तरह से इस्तेमाल करना चाहिए |
3) दुग्ध समितियां ब्याज दर 2% की आर्थिक सहायता अपने कार्यशील राशी में लगा सकती हैं और समय पर भुगतान करने पर अतिरिक्त 2% आर्थिक सहायता का लाभ उठा सकती हैं जो कि भारत सरकार की संशोधित योजना “Supporting Dairy Cooperatives and FPOs (SDC&FPO)” के अंतर्गत आता है |
4) दुग्ध समितियां लघु अवधि की राशी अथवा अतिरिक्त राशी को आधारिक संरचना के लिए न इस्तेमाल करें | सरकारी योजनाओं का अथवा दूसरी वित्तीय संस्थाओं की राशी का इस्तेमाल करें जो कि सस्ती हों |
5) देनदार एवं लेनदार का प्रबंधन का पालन एकदम सख्ती से करना चाहिए जैसा कि अक्सर किया जाता है |
6) दुग्ध समितियों को लाभ एवं घाटे की समीक्षा समय-समय पर करनी चाहिए |
7) सभी लेन- देन को समयानुसार देखना चाहिए ताकि आर्थिक स्थिति का सही जाएजा लिया जा सके |
8) खरीदी एवं मार्केटिंग के मूल्यों की समीक्षनियमित अंतराल पर करनी चाहिए आर्थिक विचारधारा का ध्यान रखते हुए|
9) गैर ज़रूरी खर्चे से बचिए तथा तय एवं बदलते खर्चे को कम कीजिये | खर्चे तो काटने या कम करने के नए विचारों को अपनाएं |